
2 अप्रैल 2025 की रात, गुजरात के जामनगर में भारतीय वायुसेना के जगुआर फाइटर जेट के हादसे ने एक युवा वीर की जीवन-लीला समाप्त कर दी। फ्लाइट लेफ्टिनेंट सिद्धार्थ यादव, जो मात्र 28 वर्ष के थे, ने अपने साहस और कर्तव्यनिष्ठा से न केवल साथी पायलट की जान बचाई, बल्कि आम नागरिकों को भी हादसे से बचाया। यह कहानी है एक शहीद की, जिसने देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया।
परिवार और सैन्य विरासत
सिद्धार्थ यादव हरियाणा के रेवाड़ी जिले के माजरा भालखी गाँव के मूल निवासी थे। उनका परिवार चार पीढ़ियों से भारतीय सेना की सेवा में रहा है:
- परदादा: ब्रिटिश शासनकाल में बंगाल इंजीनियर्स में सेवारत ।
- दादा: सूबेदार रघुबीर सिंह यादव, भारतीय सेना से सेवानिवृत्त ।
- पिता: सुशील यादव, भारतीय वायुसेना के पूर्व अधिकारी और वर्तमान में LIC में कार्यरत ।
- स्वयं सिद्धार्थ: 2016 में NDA (कोर्स 135) में चयनित हुए, 2020 में फाइटर पायलट बने, और 2023 में फ्लाइट लेफ्टिनेंट पद पर प्रोमोट हुए ।
उनकी माँ सुशीला यादव और छोटी बहन खुशी ने हमेशा उनके सैन्य करियर को समर्थन दिया। सिद्धार्थ के चचेरे भाई सुधीर और सौरभ भी वायुसेना में सेवारत हैं ।
वीरता की मिसाल: आखिरी पलों में भी देशसेवा
3 अप्रैल की रात, जामनगर एयरफील्ड से निकले जगुआर विमान में तकनीकी खराबी आने के बाद सिद्धार्थ ने अदम्य साहस दिखाया:
- जनसंख्या वाले क्षेत्र से विमान को दूर ले गए: हादसे के समय विमान को खुले मैदान की ओर मोड़कर गाँव वालों की जान बचाई ।
- साथी पायलट को बचाया: इजेक्शन प्रक्रिया में पहले सह-पायलट मनोज कुमार सिंह को सुरक्षित निकाला, जबकि खुद समय नहीं मिल पाया ।
- अंतिम शब्द: उनके पिता के अनुसार, “वह जान बचाते हुए शहीद हुआ, यही उसकी विरासत है” ।
सगाई और अधूरे सपने
सिद्धार्थ ने 23 मार्च 2025 को दिल्ली की एक युवती सानिया के साथ सगाई की थी। शादी 2 नवंबर 2025 को तय हुई थी, और परिवार इसकी तैयारियों में जुटा था । उनके पिता ने शादी के लिए रेवाड़ी के सेक्टर-18 में नया घर भी बनवाया था ।
मंगेतर की आँसुओं भरी विदाई: अंतिम संस्कार के दौरान सानिया ने रोते हुए कहा, “प्लीज, एक बार उसकी शक्ल दिखा दो…”
अंतिम विदाई: राष्ट्र ने किया सलाम
4 अप्रैल को सिद्धार्थ के पैतृक गाँव में उन्हें पूरे सैन्य सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गई:
- त्रिशूली सलामी: IAF जवानों ने गन सल्यूट दिया और उनकी चिता को मुखाग्नि उनके पिता ने दी ।
- जनसमर्थन: हज़ारों लोगों, पूर्व सैनिकों और राजनेताओं ने शोक व्यक्त किया। रास्तों पर फूल बरसाए गए ।
एक शहीद की विरासत
सिद्धार्थ यादव की कहानी सिर्फ़ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि उस समर्पण की है जो हर सैनिक के दिल में धड़कता है। उनकी माँ के शब्दों में, “मैं देश की हर माँ से कहती हूँ—अपने बेटों को सेना में भेजें। मुझे उसकी माँ होने पर गर्व है”।
सिद्धार्थ यादव ने साबित किया कि वीरता कभी मरती नहीं। उनकी शहादत हमें याद दिलाती है कि देश की रक्षा में हज़ारों सैनिक हर पल अपनी जान हथेली पर रखकर चलते हैं।